दो महिला प्रत्याशियों के बीच आजाद उम्मीदवार जी आर मुसाफिर ने भी झटके 13187 मत
बेहद रोचक रही चुनावी जंग
जीडी शर्मा
समाचार दृष्टि ब्यूरो/राजगढ़
पच्छाद विधान सभा क्षेत्र मे इस बार भाजपा व कांग्रेस ने महिला उम्मीदवारों पर दाव था जिसमे भाजपा का दांव ठीक लगा वही कांग्रेस का दांव चुक गया। इस सीट पर रोचक पहलू यह रहा कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे गंगूराम मुसाफिर को इस बार पार्टी का टिकट नहीं मिला तो वह निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतरकर गये और 13187 मत लेकर कांग्रेस को जीत से दूर कर दिया। पच्छाद विधान सभा क्षेत्र मे कुल 113 बूथ है जिसकी मत गणना डिग्री कालेज संराहा मे शांतिपूर्ण तरीके से संपन हुई। मतगणना के लिए 14 टेबल लगाये गये थे और मतगणना नौ चरणो मे पूरी हुई। जिसमे भाजपा की रीना कश्यप को 21215 मत, कांग्रेस की दयाल प्यारी को 17358 मत, आजाद उम्मीदवार जी आर मुसाफिर को 13187 मत, राष्ट्रीय देवभूमि पार्टी के सुशील भृगू को 8113 मत, सी पी आई एम के आशीष को 543 व आम आदमी पार्टी के अजय को 568 मत मिले।
बता दें कि भाजपा की रीना कश्यप ने कांग्रेस की दयाल प्यारी को 3857 मतो से पराजित कर लगातार दूसरी बार विधानसभा पंहुची इसके साथ साथ 466 मतदाताओं ने नोटा को अपनी पंसद बनाया है।
अगर पच्छाद विधानसभा क्षेत्र के इतिहास पर एक नजर दौडाई जाये तो यह सीट हिमाचल निर्माता एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. वाईएस परमार का गृह क्षेत्र रही है। 1952 में डॉ. परमार यहां से पहली बार विधायक बने थे। वहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप भी इसी विधानसभा क्षेत्र से आते हैं। वह भी यहां से दो मर्तबा विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं। इसके अलावा इस विधानसभा क्षेत्र से लगातार 7 बार मुसाफिर विधायक रहे चुके हैं, लेकिन 2007 के चुनाव के बाद मुसाफिर को लगातार हार का मुंह देखना पड़ रहा है।
दूसरी तरफ 2019 में पच्छाद में हुए उपचुनाव में रीना कश्यप को भाजपा ने पहली बार पार्टी का टिकट दिया और वह जीत दर्ज कर विधानसभा में पहुंची। उस समय विधायक सुरेश कश्यप लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे थे। इसके चलते यहां उपचुनाव हुए थे। 2022 के इस चुनाव में भी भाजपा ने रीना को भी पार्टी प्रत्याशी बनाया था। पच्छाद से भाजपा नेत्री रही दयाल पहली विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले कांग्रेस में शामिल हो गई थी। वह कांग्रेस का यहां से टिकट भी हासिल करने में कामयाब रहीं।
इस चुनाव में कांग्रेस की प्रत्याशी दयाल प्यारी को पहली बार ही हार का सामना करना पडा क्योंकि यहां से कांग्रेस का एक बड़ा धड़ा उन्हें टिकट देने से नाराज चल रहा है। सीधे-सीधे यह कार्यकर्ता मुसाफिर को टिकट देने की वकालत कर रहे थे। और शायद वही धडा दयाल प्यारी की हार का कारण बना क्योंकि अगर दयाल प्यारी व आजाद उम्मीदवार जी आर मुसाफिर को मिले मतो को मिला दिया जाये तो यह आंकडा 30545 बनता है। 2019 के उपचुनाव में भी दयाल प्यारी पच्छाद से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरी थीं और लगभग 12 हजार वोट हासिल करने में कामयाब भी रही थीं। हालांकि वह जीत दर्ज नहीं कर सकीं।
पच्छाद विस क्षेत्र पर अधिकतर समय रहा कांग्रेस का ही कब्जा
पच्छाद विधानसभा क्षेत्र से 1952 में डॉ. वाईएस परमार कांग्रेस से पहली बार विधायक बने थे। यहाँ से 1967 मे कांग्रेस से जीवणू राम, 1972 मे कांग्रेस से जालम सिह, 1977 मे जनता पार्टी से श्रीराम जख्मी, 1982 मे जी आर मुसाफिर बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीते और पहली बार ही कांग्रेस मे शामिल होकर उप वन मंत्री बने। उसके बाद जी आर मुसाफिर ने लगातार 1985, 1990, 1993, 1998, 2003, 2007,तक लगातार कांग्रेस से विधायक रहे यानि लगातार सात बार चुनाव जीते मगर साल 2012 मे मुसाफिर को आठवी बार हार का सामना करना पडा१व 2012 मे भाजपा के सुरेश कश्यप ने जी आर मुसाफिर को 2625 मतो से पराजित किया। उसके बाद 2017 मे भी सुरेश कश्यप ने जी आर मुसाफिर 6427 मतो से पराजित किया 2019 मे सुरेश कश्यप को लोकसभा का टिकट दिया गया और वे सांसद बन गये। उसके बाद पच्छाद मे उप चुनाव हुआ और भाजपा ने महिला उम्मीदवार रीना कश्यप को चुनाव मैदान मे उतारा और रीना कश्यप से भी मुसाफिर लगभग 2808 मतो से पराजित हो गये। रीना कश्यप पच्छाद से पहली महिला विधायक चुनी गयी और अब इस विधानसभा चुनाव मे दूसरी बार जीत कर विधानसभा पंहुची।
(चौथी बार पच्छाद की जनता ने चुना विपक्ष का विधायक )
पच्छाद से एक बार फिर चुना विपक्ष का विधायक 1990 मे भाजपा की सरकार बनी तो पच्छाद से कांग्रेस के जी आर मुसाफिर जीते ।।
1998 मे फिर भाजपा की सरकार बनी तो पच्छाद से फिर कांग्रेस के जी आर मुसाफिर चुनाव जीते 2007 मे प्रदेश मे कांग्रेस की सरकार बनी मगर पच्छाद विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के सुरेश कश्यप विधायक बने और इस बार 2022 मे प्रदेश मे कांग्रेस की सरकार बन रही है तो पच्छाद से भाजपा की रीना कश्यप विधायक चुनी गयी है ।
(जी आर मुसाफिर नही दोहरा पाये 1982 का इतिहास )
इसे इत्तेफाक कहें या फिर कुछ और कि 1982 भी जी आर मुसाफिर ने कांग्रेस से टिकट मांगी पर टिकट नही मिली तो उन्होंने बतोर आजाद उम्मीद अपना भाग्य आजमाया और जीत दर्ज की। अब फिर ठीक 40 सालो के बाद फिर वही परिदृश्य बना कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेता जी आर मुसाफिर को टिकट नही दिया तो वे फिर ठीक 40 साल बाद बतौर आजाद उम्मीदवार चुनाव मैदान मे उतरे मगर वह 1982 वाला इतिहास नही दौहरा पाये।