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‘‘अनसंग हीरो’’ कैप्टन के.एस. पुंडीर आजादी के अमृत मोहत्सव कार्यक्रम के तहत हुए सम्मानित

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समाचार दृष्टि ब्यूरो/नाहन

अमृत मोहत्सव कार्यक्रम के अंतर्गत “अनसंग हीरो” सेवानिवृत कैप्टन के.एस पुंडीर को मेजर दीपक धवन उप निदेशक सैनिक कल्याण सिरमौर तथा कैप्टन जीत राम द्वारा उनके निवास स्थान गुन्नुघाट, नाहन में जाकर सम्मानित किया गया।

सैनिक कल्याण विभाग सिरमौर के कैप्टन जीत राम ने यह जानकारी देते हुए बताया कि सरकार द्वारा अमृत मोहत्सव कार्यक्रम के अंतर्गत ऐसे सैनिकों को सम्मानित करने का निर्णय लिया है जिनकी कहानी देश के लिए वीरता भरी हो उन्हें “अनसंग हीर” के रुप में सम्मानित किया जा रहा है।

कैप्टन जीत राम ने कैप्टन कल्याण सिंह पुंडीर के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि उनका जन्म 25 सितंबर 1940 को गांव भजौण तहसील, रेणुका, जिला सिरमौर में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा भजौण गाँव में हुई और उसके उपरांत उन्होंने बी.ए. की शिक्षा 1962 में जी.आर.आर कॉलेज नाहन से प्राप्त की।

के.एस पुंडीर सन 1964 में सेना की 16वीं राजपूत रेजिमेंट बटालियन फतेहगढ़ में शामिल हुए। इसी बीच पाकिस्तान ने 1965 में जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ करके ऑपरेशन जिब्राल्टर शुरू किया, जो कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध का कारण बना। इस दौरान भारतीय सेना की 16 राजपूत बटालियन पश्चिम बंगाल में तैनात थी।

इसी बीच पाकिस्तान के करीबी सहयोगी चीन ने हस्तक्षेप करने की धमकी दी और भारत की पूर्वी सीमाओं के पास अपनी सेना को तैनात कर दिया। स्थिति को देखते हुए 16 राजपूत को सिक्किम के अरिटोर में जाने का आदेश दिया गया, जहां रिज पर बटालियन तैनात की गई और लेफ्टिनेंट के.एस. पुंडीर को बटालियन का मोर्टार प्लाटून कमांडर तैनात किया गया।

सन् 1969 में इस्टैब्लिशमेंट 22 में शामिल होने के बाद के.एस पुंडीर पैराट्रूपर बने। इन्होंने विभिन्न वायुयानों से 600 से अधिक जंप और फ्रीफॉल्स किए। वह एयर फोर्स स्टेशन, सरसावा में एस्टैब्लिशमेंट 22 के पैरा ट्रेनिंग स्कूल के कामंडेंट भी रहे।

1971 के युद्ध के दौरान भारतीय जनरल मानेक शॉ ने इस्टैबलिशमेंट 22 को चित्तगांव हिल ट्रैक पर कब्जा करने और जल्द से जल्द ढाका पहुंचने का काम दिया। ऑपरेशन यूनिट में भाग लेने के बाद यूनिट ढाका पहुंची, 69 जवानों की कीमती जान गंवाने के बावजूद भी चित्तगांव पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना ने ढाका जाने वाले सभी रास्तों यानी जमीन, समुद्र और हवाई रूटों को बंद कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप 90 हजार पाक सेना के जवानों ने आत्मसमर्पण कर दिया।

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